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धार्मिक चश्मे से तकनीकी का विरोध न करे!

kaushal vichar
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सम्पूर्ण चर,अचराचर में मनुष्य ही मात्र एक ऐसा प्राणी है, जिसने इस सृष्टि के अभ्युदय के बाद , निर्जन और शांति,अलंकार-रहित संसार को,

रंगने,सजने,सवांरने में अपना सबसे ज्यादा योगदान दिया. प्रश्न है,आखिर क्यों,और कैसे,प्राणिमात्र में सबसे आगे उठकर,संसार के कोरे कैनवास में

बिभिन्न रंगों को भरा,अदभुत चित्रकारी की और सभ्यताओं की नीव पर आज इस ,सुन्दर,भव्य और अलोकिक संसार को सामने लाया.जिसमे हम जीते हैं,पलते है,और अपने जीवन-स्वप्न को पूरा करते है.बड़ा सहज ,सरल उत्तर है,ज्ञान और तकनीकी. वेदों में एक शब्द आया है शास्त्र और शस्त्र.

एक उलटी विवेचना है,पहले पौरुष और शक्ति के बल पर आगे बढ़ो फिर ज्ञान प्राप्त करो. कैसे कुछ उल्टा और अटपटा लगता है न. बड़े-बड़े ऋषियों ने घोर तपस्या की ज्ञान प्राप्त करने के लिए और आप कहते हो पहले शक्ति और पौरुष इकट्ठा करो.शस्त्र में अ (आदमी या मानव) को जोड़ कर देखते हैं बिना किसी संस्कृत व्याकरण पर जोर डाले. शस्त्र में अ जुड़ते ही शास्त्र आ जाता है. है न कमाल का समीकरण .इतिहास में भी ऐसे अनेको उद्धरण मिल जायेगें. अशोक से बड़ा और क्या उदाहरण हो सकता है जिसने कलिंग युध्य में अपने पौरुष और शक्ति के बल पर अजेय    कलिंग  को  में बाद दिया पराजय के दुस्वप्न में तब्दील कर दिया. आखिर पौरुष और बल ने अशोक के ह्रदय में परिवर्तन की क्रांति बो दी जिसके फलस्वरूप महान बौद्ध धर्म या कहे धम्म संस्कृति का अभ्युदय हुआ. अब आप विवेचना करें, कैसे ज्ञान की शश्वत ,निर्झर ,ज्योतिर्मय गंगा अशोक के ह्रदय में प्रवाहित हुई और जिसके फलस्वरूप धम्म का प्रादुर्भाव हुआ. अतः आप कह सकते हैं की शक्ति या बल से  ज्ञान रुपी गंगा से मानव जाति को सिंचित और पुष्पित और पल्लवित किया जा सकता है. अब मुद्दे पर आते हैं. तकनीकी क्या है,वस्तुतः तकनीकीकोहममोटेअर्थोमेंइसतरहकहसकतेहैकीमनुष्योंद्वाराअपनेज्ञानकाप्रयोगकरतेहुए ,नएनएसूत्रोंऔरतरीकोंकोईजादकरना ,जिससेकमप्रयासमेंअधिकफायदा उठाया  जासके. वस्तुतः प्रौधौगिकी या तकनीकी ज्ञान के कार्मिक विकास और अवधारणाओं की पुष्टि के फलस्वरूप,सिद्हित  विज्ञानं है. परिभाषाओं के फेर में न पड़कर हम मोटा-मोटा यही कह सकते हैं, की विज्ञानं की बदौलत नित नए अविष्कारों को तकनीकी की श्रेणी में रखा जा सकता है.हड़प्पा खेतिहर जातियों और छोटे-छोटे कस्बों की नीव पर विकसित हुई.पत्थर के औजारों से लेकर लोहे की खोज तक जो परिवर्तन  आये वह केवल ज्ञान और तकनीकी के बदौलत संभव हुई.

अब आप समझ सकते है की ज्ञान मनुष्यों को आदिकाल से ही आकर्षित करता रहा है और इसी आकर्षण की बदौलत मनुष्यों ने नई-नई तकनीकी का इजाद किया. तो फिर मास्टर कौन है, मनुष्य या तकनीकी?यह तकनीकी ही थी की आज मनुष्य आदिम हड़प्पा युग से आज के विकसित २१ सदी की दहलीज पर खड़ा है. पलक झपकते ही हजारों मील दूर अपने प्रियजनों से बात करना हो,या हवाई जहाज में बैठ कर पूरे  विश्व का चक्कर लगाना .चाहे चाँद पर कदम रखना हो या अन्तरिक्ष की सैर करना. कितना सहज और सरल है.आदिम युग और आज के युग के परिवर्तनों की  साक्षी यह प्रकृति भी गर्व  महसूस करती होगी की कैसे उसके मनुष्यों ने ज्ञान और बुद्धि की बदौलत तरक्की और सृजन का नव-युग बनाया.

अब प्रश्न है की जहाँ एक तरफ तकनीकी से  जीवन में नयापन और सरलता आया वहीँ अंधाधुध प्रयोगों ने कुछ बिषम परिस्थितियों को भी जन्म दिया. मुद्दा यह है की हम तकनीकी के गुलाम तो नहीं बनते जा रहे. अब यहाँ गुलाम और लत में थोड़ा अंतर करेंगे. लत का मतलब किसी चीज का आदी  होना है,जैसे हम सब सुबह उठकर चाय पीते है. तो चाय लत बन गयी. या अख़बार पढ़ते हैं तो यह अख़बार पढना भी लत बन गया . अब एक मिनट रुके और सोचे अगर आज चाय न पी पाए या अख़बार न पढ़ पाए तो क्या होता है, कुछ नहीं न और अगर कल भी या कुछ दिन और . तो भी शायद बहुत ज्यादा प्रभाव न पड़े. परन्तु अगर आज चाय या अख़बार न मिलने पर हमारी रोजमर्रा के जीवन पर असर पड़ता है या कहें की इसके बिना पूरा दिन ख़राब सा हो जाता है तो कह सकते हैं की हम चाय या अख़बार के गुलाम बनते जा रहें है.   अतः तकनीकी का विरोध न करे. उसका सहर्ष स्वागत करे, नए रास्तों का इजाद करे ओर सर्वजन-सुखाय,सर्व-जन हिताय के भावसे संसार में खुशियाँ बाटें.

 

 

 

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