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ॐ श्री महाकाली ,महालक्ष्मी,महासरस्वती नमो नमः
प्रातःकालीन,स्मरणीय,वन्दनीय,पूज्यनीय माँ के चरणों में सादर.नमन,बहनों को प्यार और सुरक्षा का आत्म-बोध करते हुए भार्या (पत्नी) को बराबर सम्मान
का हक़ देना,हमने कहाँ से सीखा था, ५००० वर्षों से पहले आदिम युग के अंधकार के बाद, पत्थरों की चिंगारी,और मिट्टी के पहियों से लेकर लोहे की खोज तक,
कितना कुछ बदला हमारे, जीवन में, झुक-झुक कर, घुटनों के बल से गर्व से छाती फुला कर सीधा चलने तक जितनी प्रगति की और खानाबदोस से एक परिपक्व
समाज की सर्जना तक जिस शक्ति ने हमें कदम से कदम मिलाकर वक्त के हर पहलू में साथ दिया , वह कौन थी,सोचो,आखें बंद कर दिमाग लगाओ.
कोई उत्तर नहीं सूझ रहा है न. और सूझेगा कैसे, क्योंकि आदिम युग को हेय दृष्टि से देखने की आधुनिक आदत आपको उस तरफ सोचने ही नहीं देती होगी क्यू.
वह नारी है, नारी और केवल नारी ही नहीं, नर के जीवन का बीज,जीवन,विकास और सबकुछ. यही भाव था हद्दपा काल में,ऋगवैदिक काल में और अंत के कई सदियों
तक ,यत्र नारी पूज्यते ,तत्र देवता रमन्ते के भाव ने पूरे विश्व को मंगलमय और उतरोत्तर प्रगति के पथ पर अग्रसित किया.
अब आधुनिक हो आप,सब नारी को काम की वस्तु समझना ,जींस या टी शर्ट में उसकी देह को अनवरत घूरना क्या उचित है. आप सोचो आप जानो.
मगर आज नारी दिवस पर इतना ही कहना है ,की अब नारी को बराबर का दर्जा देने का वक़्त आ गया है. ज्यादा दिमाग मत लगाओ. कही देर न हो जाये
और हमारी नारी-विरोधी सोच हम सब को ले डूबे.
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