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ये रक्तबीज ,रक्तपिपाशु,ये बेखोफ राक्षस दौड़ रहे,
मानवता के विनास खातिर,जन-मन को नित तोड़ रहे.
हम कायर हैं,हम कायर है,
मेरे आंसू अब सूख गए.
पैसे-पैसे की मैराथन में,
अपने अपनों को फूंक रहे.
ओ बम फोड़ते आँखों में,
फिर भी अपनों को दिखता न.
ओ सरे राह सब लूट रहे,
फिर भी फर्क कोई पड़ता न.
अब आतंकवाद की परिभाषा में,नित नए शब्द जुड़ जाते हैं.
और हम कायर बस उनके तांडव से घबड़ाते हैं.
हे युवा तंत्र ! हे युवा तंत्र,
क्या रक्त नहीं है रवानी में.
क्या सूख रहे तेरे ह्रदय ,
क्या जोश नहीं है जवानी में.
एक लाठी की जब चोट पड़ी,
तो जनरल डायर भी न बच पाया.
घर में उसको था मारा गया.
इंग्लैंड भी जिससे थर्राया.
बोस,सुभास,आजाद,बिस्मिल क्या इनकी कहानी पढ़ी नहीं.
बेगम हजरत,उदा,लक्ष्मी,क्या इनकी रवानी चढ़ी नहीं.
मारो सालों को घुसकर,
कोई धर्म ,जाति न हो बंधन.
जो आतंकी-राक्षस हैं,मांदों में,
उनका सुनना है अब क्रंदन.
कोई.नेता नहीं,न राजनीति,
अब राह तुम्हारी न रोके.
जो रोके बन दावानल,
जड़-मूल समेत उन्हें फूंके.
अब समय यही कहता है,भारत माँ का है अंतिम आदेश.
आतंक शब्द का नाश करो,बांधो मुट्ठी,करो भस्म शेष.
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