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परियां हैं,मेरी बेटियां,

kaushal vichar
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परियां हैं,मेरी बेटियां,चाँद सरीखीं,शुचि,शीत,धवल.
ज्योतिर्मय निर्झर करती हैं,जीवन के हर कोन कँवल.
बेटा-बेटी का अंतर,
जीवन के उन्मूलों में.
तितली जैसी चहक रहीं है,
फूलों में और शूलों में.
चाँद से लेकर धरती तक,
पहचान बनी हैं ये बेटी.
सफल मार्ग के दुर्गम पथ का,
दंभ हरीं हैं ये बेटी.
दुर्गा है,माँ काली है, साक्षात् माँ वागीश्वरी.
त्रिलोक्य पूज्य भवानी,जीवन की परमेश्वरी.
फिर क्यूं बंध,कलुष है,
मन में, बेटी शब्द विचारों का.
अगनित कष्ट ,विषाद दे रहे,
उन जीवन-के-सारों का.
मन में अगनित प्रश्न घूमतें,
सृजन के अंतिम पल में.
आखिर खुशी कहाँ छुप जाती,
“खुशी-खुशी”,स्वागत फल में.
अब तो अपनी आँख खोल लों,न लो बेटी से पंगा.
वर्ना,जीवन-खेत तुम्हारा,होगा मरू,धूलित नंगा.

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