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छोटे-छोटे कीड़ों को चटा रही हो “प्रियंका जी”.

kaushal vichar
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sanke

” आत्मा “को ,
किसी ने देखा है.
क्या नापा-तौला उसको,
जो सीधा या तीखा है.
नही,नही न,
मन मस्तिक में,उत्तर है.
घुमड़-घुमड़ कर,
सबका यही प्रत्युत्तर है. .
चीटीं से गज तक, .
काई से व्हेल समान.
एक ही जीवन की धारा.
जैसें हैं,मनुजों के प्रान.
हाय! मनुज हो,
प्रबुद्धि,प्रबलतम हो.
फिर भी जीवन के धुरी
में सबसे निम्नतम हो.
@खतरों के ख़िलाड़ी@
से क्या सिखा रही हो प्रियंका जी.
छोटे-छोटे कीड़ों को चटा
रही हो “प्रियंका जी”.
साँप,बिच्छू,अजगर.
सब आपके खेल का हिस्सा है.
शो की “टीआरपी” के खातिर,
अब जानवर भी पिसता है.
कहाँ गए ये “पेटा” वाले,
“मेनिका जी” क्यूँ हैं चुप.
कहाँ खो गए सब “एनजीओ”,
मानवता कहाँ गई है,छुप.
इनमे भी बस्ती वही आत्मा,
बस मेरा यह कहना है.
ऐसे सीरियल मत देखो,
जहाँ हिंसा गहना है.

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