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इसलिए ,बस इसीलिए, प्रभु लीजै एक अवतार, जिससे सबको आये सदबुद्धि, और न हो जग का संघार!

kaushal vichar
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relig.unity2

कभी-कभी मन में प्रार्थना है,
हे प्रभु,
मंदिर-मंदिर बसते हो,
मस्जिद -मस्जिद सजते हो.
चर्च से लेकर गुरुद्वारों तक,
झिलमिल-झिलमिल हँसते हो.
सबके मन की,सबके दिल की,
सुनते हो,नित पल बुनते हो.
पेड़ ,पौधों,चट्टानें क्या,
कण-कण में भी गुनते हो.
सर्व-धर्म समभाव की ज्योति ,
अदभुत ,अवलोकित करते आप.
वसुधैव कुटुम्बकम का,
शाश्वत पढ़ा रहें हैं पाठ.
पर हे प्रभु!
हम मनुजो ने,
रत्ती-रत्ती जग बांटा.
मूल-भाव को ठूठ बनाया,
लड़-मर सब आपस में काटा.
इसलिए ,बस इसीलिए,
प्रभु लीजै एक अवतार,
जिससे सबको आये सदबुद्धि,
और न हो जग का संघार.

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