kaushal vichar
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यह रचना अदिति जी को समर्पित है. कल से जितना दर्द उन्होंने महसूस किया उसकी भरपाई तो नहीं की जा सकती.
परन्तु जागरण-मंच से जो रिश्ता हम लोंगों का अदिति जी के साथ बना है, वह उनके हर सोपानो पर साथ खड़ा नजर आएगा.
समर-भूमि में निकल पड़े,
तो प्रहारों से डरना क्या.
वीर-गति का भाव हिय हो,
तो जीना या मरना क्या.
धीर,वीर का साथ,
न छोड़ो.
समय पे हो सवार,
जीवन-रथ मोड़ो.
हार-रार से मत घबराओ,
सफलता चाहे कहीं हो.
हम होंगे सफल ,
चाहे जो हो पथ.
कर शपथ! कर शपथ!
कर शपथ!
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