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हाय! लड़कियां!
फूलों सा खिलती,
खुश्बू बिखरातीं,
तितलियों सा मंडराती,
सृर्ष्टि की खूबसूरत रचना.
जग की धमनी,जीवन की संरचना.
आज लड़कियां,
बंद की जा रहीं है,पिंजड़ों में,
झूठे सम्मान के ,क्रूर जबड़ो में,
गोत्र में,जाति में,झूठी पंचायतों में,
विजातीय ,सजातीय के झूठी ,कवायतों में.
फूल हैं,खुश्बू हैं,उत्तंद लहरें है,
लेकिन सम्मान के भी झूठे पहरें हैं.
अपनी बहू को पहले,
दहेज़ के लिए जलाया.
कुछ कामांधों ने,
इनको नोचा ,
तब भी लोंगों का दिल न पिघलाया.
आज लड़कियां,
झूठे सम्मान खातिर,
बाँट दी जा रही हैं.
भेड़-बकरियों के मानिंद,
काट दी जा रहीं है,
लड़का-लड़की एक समान,
का विज्ञापन रोज चिपकाये जाते हैं,
मगर हमारा दिल,
तो टीवी का रिमोट बन चला हैं.
ख़बरों दर ख़बरों में ,
उलझाये जाते हैं.
बस और कितना सितम कर लोगे,
आखिर एक दिन ऐसा तो आएगा,
तुम मानव ,
अपनी अस्मिता मिटा रहे,
एक दिन खुद ,
एक बिटिया के लिए ,
जब तरसेगा,
तो यह झूठा सम्मान,
कुछ न कर पायेगा.
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