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कॉलेज का था पहला दिन,
मन में छाई थी खुशयाली.
कॉलेज भी लग रहा था ऐसे,
जैसे ईद आज हो, या दिवाली.
रंग-रंग के कपड़े पहने,
जैसे फैसन का हो कार्निवाल.
तरह-तरह के परिधानों में,
लड़कियां दिखाती अपना कमाल.
मै मोहन कुछ सकुचाते,
आँख मींजते जा पंहुचा.
पल भर , लगा स्वप्न में हूँ,
कॉलेज ही है या जलसा.
खैर अपनी क्लास भी,
विद्यार्थियों से भरी हुई.
अगली तीन पंक्तिया में ,
तो लड़कियां हीं खड़ी हुई .
मन में फूटे बहु लड्डू,
अब तो मजा आ जायेगा.
अपनी भी किस्मत जागेगी.
गर्ल-फ्रेंड मिल जायेगा.
इसी ख्याल में डूबा था की,
कोई पीछे से फिसल गया.
पीछे जब पलट कर देखा.
दिल बल्लियों सा उछल गया.
क्या यौवन है, क्या जादू है,
सुन्दरता में करीना थी.
मटक -मटक ,बिल्लों जैसी आँखे,
क्या मद-मस्त हसीना थी.
पलट कर मैंने उसे उठाया.
thank यू कह खिलखिला उठी.
मैंने भी शरमाते-शरमाते,
उससे नैना – चार की.
इक पल ठहरी,आगे बढ़ गई,
ठक-ठक ,हीली सैंडिल में.
दिल में मेरे मची धुक-धुकी,
दिल फ़स गया कैंडिल में.
आगे से कुछ दिन बीते,
हफ्ते बीते,बीते माह.
कभी-कभी थोड़ी बात भी होती.
उसके नखरे वाह भाई वाह.
आखिर मैंने कैंटीन में ,
इक दिन उसको पकड़ लिया.
अपने सारे अरमानो से ,
मैंने उसको जकड़ लिया.
कुछ पीले ,मुरझाये ,
बासी गुलाब को निकाला.
घुटनों के बल मै बैठा.
प्रपोज उसको कर डाला.
वह भी थोडा मुस्काई,
हाथ पकड़ कर रिसियाई.
बोली तुम एकदम उल्लू हो,
बन जाओ मेरे भाई.
मैंने भाई शब्द सुना ,
तो उसका हाथ झटक दिया.
गुस्से में उसको देखा.
अपना पैर पटक दिया.
फिर मुस्काई वह और बोली,
लल्लू तुम इक दम लल्लू हो.
मै तुम्हे भाई बना रही हूँ,
तो भी तो तुम मेरे पल्लू हो.
वैसे भी भाई बनने में ,
ज्यादा कोई रिस्क नहीं है.
दीदी -दीदी कहते घूमना,
अपना मैच तो फिक्स नहीं है.
इसी बहाने और कई,
लड़कियां तुम्हे मिल जायेगीं.
मेरे भी ऐसे कई भाई हैं,
नई हसीना आएँगी.
बॉय-फ्रेंड का कांसेप्ट,
अब आउट-डेटेड जानो.
दीदी-दीदी करते रहना.
मेरा कहा तुम मानो.
इक पल मुझे यकीन न हुआ,
मुखौंटों में “दीदी” छन जाती है.
आज-कल तो यह फैसन है.
दीदियाँ बहुत बन जाती हैं!
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