kaushal vichar
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चन्दन है इस देश की कुर्सी,
हर कुर्सी पर नाग है.
घोटालों से सृजित सत्ता,
देश-प्रेम का त्याग है.
कंस बना है भाई सबका,
सीता रावण संगी है.
आदर्शों की होती हत्या,
कोटि द्रोपदी नंगी है.
अहिंसा का “अ”,
नर्वस लाचार हो गया.
भेड़-बकरियों से भी निचला,
मानव का आधार हो गया.
लोकतंत्र की गर्दन पर,
राजतन्त्र की धार हो गया.
आजादी की इस परिभाषा,
से ही सबको प्यार हो गया.
सुभाष,भगत,आजाद,खो गए,
यूँ नेताओं की आंधी.
सत्य-अहिंसा कहने वाले.
गाली पाते गाँधी.
दूध,मलाई,मक्खन,कुत्ते,
कहीं चाव से खाते हैं.
कहीं एक सूखी रोटी हित,
बच्चे भी रिरयाते हैं.
जागो,उठो करो युवा कुछ,
अब देना तुझको ही कन्धा है.
आगे भरी भंवर पड़ी है.
नाविक तेरा अँधा है.
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