kaushal vichar
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कब तक मेरा बेटा!
नक्सलियों के सिर को कुचलेगा.
गोली,तोप और गोलों से,
उनकी छाती को मसलेगा.
ये दुर्लभ अरि मायाबी हैं,
जल,थल,नभ से आते-जाते.
बहुविधि कुकृत्यों को कर-के,
मम,ममत्व को बहुत रुलाते.
आर-पार की परिभाषा में,
भींची मुट्ठी,खुल जाती है.
एक अनवरत शांति खातिर,
पौरुषता नित छल जाती है.
शांति और वार्ता करने दो,
सेना नहीं हल है,समस्या का.
धूप,शीत,वर्षा को जो झेलें,
क्या होगा इनकी तपस्या का.
कब तक मै(माँ) रोउंगी,
वक़्त गया रोने-धोने का,
मुझे भी जाना है रण में,
माँ हूँ,दुर्गा हूँ,काली हूँ.
बहना कहती मै भी जाऊं,
रानी लक्ष्मी,बलशाली हूँ.
पत्नी बोली,हठ भी छोड़ो,
मै तोपों में आग भरूँगी.
अपनी मांग के सिन्दुरों में,
अब गोले,कारतूस धरूंगी.
अब सबका समवेत स्वर है,
छद्म-युद्ध का हो विस्थापन.
एक पल में भस्म करेंगे,
नक्सलियों के समूल संस्थापन.
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