kaushal vichar
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२३ साल बीत गए , अब आया है ख्याल ,
हजार मौतों की सजा बस ,केवल दो साल.
अजब व्यवस्था की एवज,न्याय गया कुम्हलाय,
कमजोर धाराओं से ,सजा गई सुस्ताय.
निरीह,गरीब,गुरबों को कहाँ मिलेगा न्याय,
इन २३ सालों का दर्द किसे बतलाय.
कुछ सोते ,सोते रहे,कुछ के जीवन रात,
बाकि पिछले सालों से टूट रहे ज्यों पात.
ऐसी सजा से भली कुछ दिन जाते और,
आधी सदी बाद तो प्रकृति भी देती छोड़ .
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