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ये नक्सली ,क्रूर ,राक्षस ,आतंकी हैं,
राष्ट्र-द्रोही,देश-अरि और सनकी हैं.
पागल कुत्ते जैसे सब को कांट रहे है.
और हम शांति – रेवड़ियाँ बाँट रहे हैं.
शिशुपाल की सौ गाली,
कृष्णा का चक्र चला देती.
भय बिन होय न प्रीत,
समुद्र को भी जगा देती.
कब तक हम सब,
यूँ ही मारे जायेगे.
कब तक गंद,
राजनीती से, पक्षतायेगे.
मेरे सैनिक बोझ,
ढो रहे बंदूकों के.
आज ठगा है देश,
इनकी करतूतों से.
वक्त यही आज ,
अभी लड़ना होगा.
अपने सारे घाव उधेड़ो,
दर्द थोडा बढ़ना होगा.
लाल-लाल, अब लाल न हो
हम भारतियों के लाल.
एक-एक को घेर के मारों,
करना यही कमाल.
राम ने रावण को मारा
अति उत्तम है.
तो फिर क्यू देख रहे,
जब सब सर्बोत्तम है.
अगर हवन हो, रहे हमारे घर,
तो हम खुद अपने घर जला देंगें.
अपने नव-शिश्वों को भी हम,
बंदूकें पकड़ा देंगें.
मेरा बस जो चले,
अभी हमें दो बंदूकें.
गोली-गोला,बारूदों,
की भरी हुई संदूकें.
अगर अभी भी ,
सब्र जनता का तौला जायेगा.
हर घर फिर बंकर बनकर
इन नक्सलियों को मार-भगाएगा.
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