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नक्सलियों :इतना अच्छा गृहमंत्री , फिर कभी न पाओगे.

kaushal vichar
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माना की आजादी के बीते वर्षो में,
गुमनामी की चादर तुमपर.
ढकी हुई है अबतक,
रौशनी नहीं चढ़ी है,फटकर.
माना के व्यवस्था के खेल में,
कठपुतली बन गए सभी हो.
पहले अपने तुम्हे नचाये.
अब दुश्मन के समधी हो.
जिस देश में पैदा हुए,
आब,हवा,मिटटी ने पाला,
वसुधैव-कुटुम्बकम ने,
दिया प्यार का अमृत प्याला.
आज हुए फिर तुम क्यू बागी,
बागी हो या क्रोध तुम्हारा.
इसी क्रोध की आड़ में,
दुश्मन लेता तेरा सहारा.
क्या माता को दूध न हो,
तो उसके स्तन काटोगे.
पिता अगर लाचार निकलता,
तो क्या उसको बाटोगें.
लूटमार ,या गोली से,
किसने अपना हक़ पाया है.
अपने बंधू-वान्धव के शव पे,
किसने परचम लहराया है.

इतना अच्छा गृहमंत्री ,
फिर कभी न पाओगे.
अपनी बात रखने का.
यदि यह अवसर गवावोगें.
फिर तो तुलसीदास लिख गए,
भय बिन होत न प्रीत .
अरि सा उपमा देश दे रहा,
क्या यही तुम्हारी है जीत.
शस्त्र त्याग,शांति फैलाओ,
यदि सब जीना चाहते हो.
नक्सलियों क्यों भून-भून कर,
दुश्मन सा मरना चाहते हो.

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