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सभ्य समाज ,सुसंस्कृत ,समाजवाद और पता नहीं कितने अलंकारिक शैली का प्रयोग करते है. हमारा देश हमारी संस्कृत बड़ा गर्व है आदि आदि. पहले समझ लो क्या हो और क्यू हो. आर्य हो या अनार्य .जाहिर सी बात है बड़ा गर्व है हमें हम आर्य है, हम श्रेठ है. चलो एक बात तो स्पस्ट हुई. दूसरी बात वर्ण व्यवस्था का सूत्रपात किसने किया. आप उत्तर दे. आप सभी जानते है की प्राचीन भारत के सौन्दर्य का सबसे ज्यादा काला पक्ष उसकी रुढिवादिता और आडम्बर है. दूसरी बात हमारे देश में जो लोग ज्यादा पैसा कमा लिए या फिर इंग्लिश संस्कृत से ज्यादा प्रभावित हुए तो वें लोग अपने देश के बड़े बड़े मेट्रो cities में आकर बसे.
अब जो लोग मेट्रो वाले हुए उनकी संताने पैदा होते ही मेट्रो वाली हो गई. तो एक स्पस्ट मोटी लाइन खीच उठी. अब आप जन्म से मेट्रो वाले हो तो आप को अपने जीवन में इतनी सारी जगह नहीं मिली या कहे तो टाइम नहीं मिला जिसने आपके आत्म सम्मान या तथाकथित आत्म-स्वाभिमान को ये मौका दिया हो की आप ठाकुर हो या ब्रह्मिन आदि आदि.
दूसरी तरफ आधे से ज्यादा आबादी गाँव में बसी जैसे नॉन – मेट्रो वाले.
नॉन मेट्रो वालों का अपना तथाकथित आत्म -सम्मान है,स्वाभिमान है और होगा क्यू नहीं क्यू की सभी आडम्बर पूर्ण प्रयोजनाओं का ठीका तो हम सभी लोंगो ने ही तो लिया है. कितनी मोटी लाइन है हम सबके बीच.बचपन से देखते आ रहे है.
अब डोक्टर साहब को देखो कितना पैसा कमाया है. सुबह से लेकर शाम तक हजार लोग पैर छूते है. गाँव -जवांर में बड़ा रुतबा है. बड़ा तथाकथित सम्मान है जो उनके स्वाभिमान को तुष्ट करता है. तो अगर डॉक्टर साहब की लड़की ने निरहू के लड़के से गलती से कही प्रेम कर लिया तो निरहू की खैर नहीं.
और कही निरहू डॉक्टर साहब से ज्यादा शक्तिशाली है तो लड़की की खैर नहीं.
तो जनाब किसको दोस देंगे.
इससे अच्छा है की या तो मेट्रो-वाले ही बने रहो या फिर नॉन-मेट्रो वाले.
बीच में अगर घालमेल की तो भुगतो.
आखिर हम double -standard में क्यू जीना चाहते है.
तो आखिर निरुपमा को किसने मारा? जबाब दे?
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