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क्रिकेट है या सट्टे का खुला हुआ बाज़ार है?

kaushal vichar
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पैसे की मारामारी में
सबकुछ अब बाज़ार है.
बिकती थी पहले तो वेश्या,
अब सब बिकने को तैयार हैं.
जहाँ जहाँ तक नजर जा रही,
सब कुछ लगता काला है.
पहले तो थे कुछ छोटे मकड़े.
अब बस मकड़ियों का जाला है.
किस किस पर तोहमत मारोगे,
हमसाया भी साथ नहीं.
आखें भी अब झूठी हो रही.
कानो की तो बात नहीं.
खेल, कबड्डी पहले भी थे.
अब सारी पीड़ा झेल रहे.
खेलो को भी अब न बक्सा .
खेलो में भी खेल रहे.
कहाँ कहाँ सट्टा पकड़ोगे,
अब तो सब बीमार है .
क्रिकेट है या सट्टे का.
खुला हुआ बाज़ार है.

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