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बस एक सुनंदा के खातिर,
क्या खूब नक्कारे बजते हैं..
सारे गुण, औगुन आये नजर,
राजा ,रंक में सजते हैं.
पर ध्यान नहीं जाता उनपर,
जो नित नई सुनंदा लाते हैं.
क्रिकेट के बहाने रातो में,
नित नए जाम छलकाते हैं.
यह खेल सभ्य लोगो का,
श्वेत बस्त्रो में जाता खेला.
लेकिन कुछ लोगो ने ,
रंगीनियत का लगा डाला मेला.
क्या क्या न किया,
क्या क्या न हुआ .
वो चौको ,छक्को को देखो.
या देखो कमरों की थिरकन.
गोरी-गोरी अर्ध-नाग्नाएं,
या उनकी जुम्बिस के फिरकन.
कुछ लोग बुलाये जाते है.
कुछ लोग किराये पर आते.
क्रिकेट को करते शर्मशार,
कुछ लोग नचाये भी जाते.
क्या बेशर्मी इनकी देखो,
हाथो में शैम्पेन की प्याली.
दोनों ओर से चिपकी है.
गोरी फूलो की डाली.
यह सभ्य आचरण है इनका.
क्या खूब बहाना पाया है.
क्रिकेट के आड़ में देखो.
क्या-क्या राज छिपाया है.
एक तरफ इनकी अय्यासी ,
दूजे आधी जनता नंगी है.
तीजे सरकार ध्रितराष्ट्र बनी,
इनके संगी -संगी है.
यह आई पी यल की राते,
या अय्यासी का अड्डा है.
क्रिकेट-प्रेमियों देखो उधर.
लगता सट्टे पर सट्टा है.
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