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आजकल शिवसेना या उनके मराठी कार्ड की चर्चा बहुत जोरो से है .प्रिंट मीडिया से लेकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया हर जगह कुछ इधर उधर से दो चार लोगो को इकट्ठा कर बेवजह के बहस वहस शुरू कर देते है. पहले तो एक बहुत ही जरूरी आन्दोलन की जरूरत है, खासकर यह काम केवल मीडिया के लोंगों को ही करना चाहिए . काम भी बहुत सीधा सादा है, लेकिन बिग रिजल्ट ओरिएन्तेद है.आप लोग किरपा कर ऐसे किसी भी आदमी,दल या लोगो को मीडिया की खबरों या सुखियो में मत आने दीजिये जो देश हित में बात न कर रहे हो .अगर ऐसा हो जाये तो चिल्लाने दीजिये कौन जानेगा उनको या उनके कलुषित विचारो को.
अब पते की बात करते है. आजकल रैली और सभाओ में लोग कहाँ से आते हैं. एक सत्य घटना है. एक आदमी एक पर्मुख पार्टी की रैली में दिल्ली गया. कुछ दिन बाद मैंने देखा वही आदमी एक दुसरे पर्मुख पार्टी की रैली में लखनऊ गया और फिर एक तीसरे पर्मुख पार्टी की रैली में जा रहा था तो मैंने पूछा भाई साहब आप तो रोज रोज पार्टी बदल रहे हो. उसने कहा अरे साहब !इसी बहाने दिल्ली ,लखनऊ और बड़े शहरों को देखने और घूमने फिरने को मिल जाता है वोह भी मुफ्त और साथ में खाना पीना और दिन के हिसाब से १००-५० रूपये भी. इससे बढ़िया कहा मिलेगा . मुफ्त का घूमना और पैसे भी. शायद आप लोग समझ रहे होंगे की जो भीड़ दिखती है उसकी आस्था किसमे है.
मेरा पुस्तैनी सोने-चांदी का काम है. ज्यादातर पढाई के कारन बाहर रहने के कारन इस बिज़नस के मूल तत्त्व को मैं नहीं जनता था. एक दिन मैं अपने भाई के साथ सोने वाली गली गया तो देखा २०-२५ दुकानों में भट्ठी दहक रही है. तेजाब,शोरो के महक चारों वोर फैली हुई है. जगह जगह पुराने चांदी व सोनो को गलाया जा रहा है. मैंने भाई से पूछा ये सब क्या है तो उसने बताया की सबसे पहले पुराणी चांदी व सोनो को गलाया जाता है और उनके शुद्ह्त्ता की परख की जाती है जो इन्ही दुकानों में होती है . यही लोग गलाकर ,शुद्हत्ता का परमान पत्र देते हैं. बोलचाल की भाषा में उसे टेन्च कहते है . जैसे अगर ०१ किलोग्राम चांदी ६० टेन्च की हुई तो इसका मतलब शुद्ध चंडी ६०० ग्राम है. मैं एक दुकान में बैठकर यह सब देखने लगा मैंने दुकान के मालिक से पूछा आप कहा से हो. उसने बताया की मैं पुणे से ६० किलोमीटर दूर एक गाँव से हूँ. मैंने कहा आप इतनी दूर से इस छोटे से शहर में आये हो. उसने बताया की यहाँ जो भी दुकान देख रहे हो सब मराठियों की है. और यहाँ ही नहीं भारत के सभी बड़े या छोटे शहरों में बहुत सारे मराठी लोग यह काम करते है. मैंने थोडा आगे बढ़कर मराठी मानुष की ,शिवसेना अजेंडे की बात की तो उसने कहा . देखिये हम लोग यहाँ काम करते हैं,पैसा कमाते हैं, इज्जत पाते हैं , आजतक किसी ने यह नहीं कहा की तुम महाराष्ट्र से यहाँ क्यू आयें हो.लेकिन पता नहीं बाला साहेब को क्या पड़ी है की मराठी-मराठी चिल्लाकर सब लोगों में विभेद कर रहे हैं. आखिर पहले तो हम सब भारतीय ही हैं.
क्या कोई आम मराठियों के दिल की बात सुनेगा?
विजय कुमार कौशल
अयोध्या,फैजाबाद.
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