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न हो फिर ‘शिव’ का अपमान.

kaushal vichar
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महाशिवरात्रि की बेला पर,
बेल ,पुष्प, घी, अर्पित करते .
भांग ,धतूर और गंगा-जल से,
बाबा की पूजा सब करते.
“नमः शिवाय ” का सम्मिलित स्वर है,
चहुँ ओर घंटे घरियाल .
पर्वत पर्वत ,मंदिर मंदिर ,
हर हर महादेव घोषाल.
शिव सत्यम हैं,शिव सुन्दर है.
विधि विकास- विनाश ,अविनाशी.
जिसने परहित गरल पिया हो ,
औघरदानी,हित-अभिलाषी .
उनके नाम की सेना बनाई ,
नाम धरे हो, शिवसेना.
पर इक भी न गुण उपजाए .
कैसी है फिर ये सेना.
बाबा के गण अगणित हैं.
भूत ,पिसाच ,जिन्न बहुतेरे,
शारीरिक दोषों को भूलकर
शामिल है सब ,सांप ,सपेरें .
भाव यहाँ अति निर्मल है,
भेद-विभेद नहीं है कोई.
वर्ण,काल,स्थान न व्यापे ,
जो आवए,सब शिव का होई .
ऐसे शिव को तुम अपनाये .
उनकी नाम के सेना बनाये.
पर क्यूं शिव-भाव को भूले .
नाम रखे बस,बाकी फूले.
छि छि तुमको शर्म न आये .
बम-बम बोले , औ चिल्लाये .
लेकिन इक भी करम, आप सब
मानव के हित न कर पाए .
उस गंगाधर की निष्ठा .
परहित सरिस में है ,लो जान,
सुधरो ,अपने करम बदल हो,
न हो फिर शिव का अपमान.

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